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सागारधर्मामृत
[ ३ उनका देशव्रत भी किसी कामका नहीं हैं। क्योंकि महाव्रत धारण करनेका अनुराग रखना ही देशव्रत धारण करनेवाला परिणाम कहलाता है । जिसके ऐसे परिणाम हैं उन्हीं गृहस्थों का धर्म इस ग्रंथमें प्रतिपादन किया जायगा ॥१॥ अब सागार अर्थात् गृहस्थका लक्षण लिखते हैं
अनाद्यविद्यादोषोत्थ चतुः संज्ञाज्वरातुराः । शश्वत्स्वज्ञानविमुखाः सागारा विषयोन्मुखाः ॥२॥
अर्थ — जो अनादि कालके अविद्यारूप बात पित्त कफ इन तीन दोषोंसे उत्पन्न हुये आहार भय मैथुन और परिग्रह इन संज्ञारूप चार प्रकार के ज्वरोंसे दुखी हैं, और इसलिये ही जो अपने आत्मज्ञानसे सदा विमुख हैं तथा स्त्री भोजन आदि इष्ट अनिष्ट पदार्थों में रागद्वेष करनेवाले हैं उन्हें सागार अर्थात् सकल परिग्रह सहित घरमें निवास करनेवाले गृहस्थ कहते हैं ।
भावार्थ - - वात पित्त और कफ के दोषोंसे साध्य प्राकृत, असाध्य, प्राकृत साध्य वैकृत और असाध्य वैकृत ये चार प्रकार ज्वर उत्पन्न होते हैं उसी तरह अनित्य पदार्थों को नित्य मानना, दुख के कारणोंको सुखरूप मानना, अपवित्रको पवित्र मानना और शरीर स्त्री पुत्र आदि अपने ( आत्माके) नहीं है उन्हें अपना मानना अविद्या कहलाती है; उसी अविद्यारूप दोषसे आहार