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सागारधर्मामृत
[ २५५ उत्तरमें लक्ष्मण भी " अच्छा ऐसा ही हो" कह कर रामके साथ चले गये। इसकथासे यह अच्छीतरह समझ लेना चाहिये कि रात्रिभोजन पांच महापापोंसे भी बढकर महा पाप है ॥ २६ ॥ | आगे-लौकिक कार्योंको दिखाकर रात्रिभोजनका निषेध करते हैं- .
यत्र सत्पात्रदानादि किंचित्सत्कर्म नेष्यते । कोऽद्यात्तत्रात्ययमये स्वहितैषी दिनात्यये ॥२७॥
अर्थ- अनेक दोषोंसे भरी हुई ऐसी जिस रात्रिमें मिथ्यादृष्टि लोग भी सत्पात्रदान, स्नान, देवार्चन, आहूति, श्राद्ध और विशेष भोजन आदि सत्कर्म नहीं करते हैं तो इस लोक और परलोक दोनों में अपना हित चाहनेवाला ऐसा कौन श्रावक है जो अनेक दोषोंसे भरी हुई रात्रिमें भोजन करे ? अअर्थात् कोई नहीं ॥ २७ ॥
___आगे--दिन रात्रिके भोजनसे मनुष्योंकी उत्तम म| ध्यम जघन्यता कहते हैं
मुंजतेऽह्नः सकृद्वर्या द्विर्मध्याः पशुवत्परे ।
रात्र्यहस्तद्वतगुणान् ब्रह्मोद्यान्नावगामुकाः॥२८॥ __ अर्थ--मुख्यतासे शुभ कर्म करनेवाले उत्तम पुरुष दिनमें एकवार भोजन करते हैं तथा मध्यम रीतिसे शुभ कर्म
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