________________
mamrrrrrrammmmmmmm
२६६ ]
चौथा अध्याय सामने हुआ है ' यह झूठी गवाही कहलाती है । इस झूठी गवाहीमें दूसरे किसी पुरुषपर पापका आरोप किया जाता है इसलिये ऊपर कहे हुये तीनों प्रकारके झूठोंसे यह भिन्न है । झूठी गवाही देना धर्म विरुद्ध है क्योंकि गवाही देते समय प्रतिपक्षीकी यहीं प्रार्थना रहती है कि धर्मसे कहना, अधर्म | मत करना । इसलिये धर्मविरुद्ध होनेसे झूठी गवाही कमी नहीं
देनी चाहिये । जो कोई किसीके यहां रक्षा करनेकेलिये धरोहर रखता है उसे न्यास कहते हैं यदि किसीने अपने यहां कुछ सोना चांदि आदि धरोहर रक्खा है तो उसे पचा जानेकेलिये कभी झूठ नहीं बोलना चाहिये, क्योंकि ऐसा करनेसे विश्वासघात होता है । जिसविषयमें कुछ ज्ञान नहीं है अथवा किसी तरहका संदेह है उस विषयमें भी कभी झूठ नहीं बोलना चाहिये । जब अज्ञान और संशयमें ही झूठ बोलनेका निषेध है तब फिर राग द्वेषसे झूठ बोलना बहुत ही बुरा है ऐसा झूठ तो कभी नहीं बोलना चाहिये ॥ ३९ ॥ ____ आगे-लोकव्यवहारके अनुसार कौनसा वाक्य बोलना चाहिये और कौनसा नहीं इसका उपदेश देते है
लोकयात्रानुरोधित्वात्सत्यसत्यादि वाकत्रयं । ब्रूयादसत्यासत्यं तु तद्विरोधान्न जातुचित् ॥४॥
अर्थ--सत्याणुव्रती श्रावकको लोकव्यवहारके अनु| सार आगे कहे हुये सत्यसत्य, असत्यसत्य, सत्य असत्य ऐसे