Book Title: Sagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pandit, Lalaram Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 317
________________ सागारधर्मामृत [ २६७ तीन प्रकारके वचन बोलने चाहिये और असत्यासत्य लोकव्यबहार के विरुद्ध है इसलिये उसे कभी नहीं बोलना चाहिये ॥ ४० ॥ आगे - सत्यसत्य आदिका स्वरुप तीन श्लोकोंमें कहते हैं - यद्वस्तु यद्देशकालप्रभाकारं प्रतिश्रुतं । तस्मिंस्तथैव संवाद सत्यसत्यं वचो वदेत् ॥४१॥ अर्थ -- जो पदार्थ जिस देशमें जिस कालमें कहा है, जो कुछ उसका परिणाम वा संख्या कही है तथा जो कुछ उसका रंग आकार आदि कहा है उस पदार्थको उसी देश उसी कालका कहना, वही उसका परिमाण वा संख्या बतलाना और वही उसका रंग वा आकार कहना । वह जैसा है उसे वैसा ही ज्योंका त्यों यथार्थ कहना सत्यसत्य है । श्रावक को ऐसा सत्यसत्य वचन सदा बोलना चाहिये ॥ ४१ ॥ असत्यं वय वासोंऽधो रंधयेत्यादि सत्यगं । वाच्यं कालातिक्रमेण दानात्सत्यमसत्यगं ॥४२॥ अर्थ -- सत्याणुत्रती श्रावकको सत्यके आश्रित वाक्य अर्थात् जो लोक व्यवहार के अनुसार सत्य माने जाते है ऐसे असत्य वचन भी वोलना चाहिये। जैसे लोकमें कहते हैं "कपड़े बुन" इस वाक्यमें जो बुनना क्रिया है वह कपडेपर नहीं होती किंतु तंतुओं पर ( सूतपर) होती है, सूत बुने जाते हैं कपडे नहीं | इसलिये कपडेपर बुनना क्रियाका प्रयोग करना

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