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चौथा अध्याय आदिमें गर्भ धारण कराकर अपनी नियत की हुई संख्याका उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिये । यहांपर गर्भ धारण कराकर यह उपलक्षण है इस उपलक्षणसे जो अपने काम नहीं आते ऐसे यथायोग्य गाय भैंस आदि रखकर अथवा मनमें अधिक रखनेकी इच्छा रखकर नियत संख्याका उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिये । जिसके एक वर्षके लिये चार पशु रखनेका परिमाण है और उसके दो घोडे तथा दो गाय हैं । यदि वह अभी उन गायोंके गर्भ धारण करावेगा तो वर्षके भीतर ही पांच या छह संख्या हो जायगी और व्रत भंग हो जायगा ऐसा समझकर तीन या चार महीने बाद गर्भधारण कराना कि जिससे नियत मर्यादाके बाहर प्रसूति हो । यह पांचवां अतिचार है क्योंकि बाहरमें चार ही पशु दिखाई पड़ते हैं इसलिये व्रतका भंग नहीं होता तथा उदर में पांचवीं वा छट्ठी संख्या होनेसे व्रतका भंग होता है इसप्रकार भंगाभंगारूप अतिचार होता है।
ये अतिचार " क्षेत्रवास्तु हिरण्यसुवर्ण धनधान्य दासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः” इस तत्वार्थ महाशास्त्रके अनुसार कहे गये हैं। स्वामी समंतभद्राचायने "अतिवाहनाति संग्रह विस्मयलोभातिभारवहनानि । परिमितपरिग्रहस्प च विक्षेपाः पंच लक्ष्यते ॥” अर्थात्-" अतिवाहन, अतिसंग्रह, विस्मय, लाभ, और अतिभारवहन ये पांच अतिचार माने हैं । लोभके वशीभूत होकर मनुष्य अथवा पशुओंको शक्तिसे अधिक जबर्दस्ती चलाना अतिवाहन है । आगे इन धान्यों में बहुत लाभ होगा यही समझकर लोभके वशसे उनका अधिक संग्रह करना अतिसंग्रह है । जो धान्य अथवा दूसरा पदार्थ
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