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सागारधर्मामृत
[२९३ अद्भुत प्रभावशाली है अर्थात् उसकी महिमा लोगोंको आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली है। जब स्वदारसंतोषरुप एकदेश ब्रह्मचर्यकी ही इतनी महिमा है तो जो पूर्ण ब्रह्मचारी है अर्थात् स्त्रीमात्रका त्यागी है उसकी महिमाका वर्णन फिर दुवारा क्या करना ? भावार्थ-उसकी अपार महिमा है, पहिले भी उसका वर्णन कर चुके हैं ॥ ५६ ॥ .
____ आगे-केवल अपने पतिको सेवन करनेवाली पतिव्रता स्त्रीकी पूज्यता दृष्टांतद्वारा दिखलाते हैं
रूपैश्वर्यकलावर्यमपि सीतेव रावणं । परपूरुषमुझंती स्त्री सुरैरपि पूज्यते ॥ ५७ ॥
अर्थ-जिसप्रकार सती सीताने रूप अर्थात् शरीरके आकार आदिकी सुंदरता, ऐश्वर्य अर्थात् बडप्पन, धन, आज्ञा आदिका स्वामीपना और गीत नृत्यादि रूप कला आदिसे सर्वोत्कृष्ट ऐसे रावणका त्याग किया था उसीप्रकार जो स्त्री अपने पतिसे सुंदरता, ऐश्वर्य और कला आदिसे उत्कृष्ट ऐसे भी परपुरुषका त्याग करती है वह स्त्री देवोंसे भी | पूजित होती है । भावार्थ-जैसे देवोंने सीताकी पूजा की थी
उसीप्रकार अन्य पतिव्रता स्त्रियां भी देवोंके द्वारा पूजी जाती हैं । जब वे देवोंके द्वारा पूजी जाती हैं तो मनुष्योंकी तो बात ही क्या है ? यह अपि शब्दसे सूचित किया है । इस श्लोकमें 'परपूरुषमुझंती' यहांपर हेतुमें शतृङ् प्रत्यय किया है उसका