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| २८० ] चौथा अध्याय
अनुमति देना, तथा चोरी करनेके साधन कुसा, कैंची, कमंद, आदि पदार्थ देना अथवा ऐसे पदार्थ बेचना आदिको चौरपयोग कहते हैं । यहाँपर जिसने " मैं चोरी नहीं करूंगा और न कराऊंगा" ऐसा व्रत स्वीकार किया है उसका अचौर्यव्रत ऊपर कहे हुये चौरप्रयोगसे भंग हो जाता है फिर भी इसको अतिचार कहा है इसका कारण यह है कि " तुम विना व्यापारके व्यर्थ ही क्यों बैठे रहते हो ? यदि तुम्हारे पास कुछ खाने पीने को नहीं है तो मैं देता हूं, तुम्हारी लाई हुई वस्तुको खरीदने वाला यदि कोई नहीं है तो मुझे दे जाना, मैं बेच दूंगा" इसप्रकारके वचनोंसे चोरोंको चोरी करनेमें प्रेरणा करता है। उनको स्पष्ट रीतिसे नहीं कहता कि तुम चोरी करो परंतु चोरको उद्देशकर ऐसे वाक्य कहता है कि जिन्हें सुनकर वे चोरी करनेमें लग जायं परंतु वह स्वयं ऐसी कल्पना करता है कि 'मैंने व्यापार करनेकेलिये ये पदार्थ मगाये हैं' इसप्रकार अंतरंग व्रतका भंग और बाह्यवतका अभंग होनसे चौरप्रयोगको अतिचार कहा है।
चौराहतग्रह-जिसको चोरी करनेकी प्रेरणा भी नहीं की है और न जिसकी अनुमोदना ही की है ऐसा चोर यदि सुवर्ण वस्त्र आदि द्रव्य लावे और वह मूल देकर खरीद लिया जाय अथवा अधिक लेलिया जाय तो उसे चौराहृतग्रह कहते हैं। चोरके द्वारा लाया हुआ पदार्थ अधिक मूल्यका होकर भी गुप्त रीतिसे
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