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चौथा अध्याय सदलपन, असदुद्भावन, विपरीत, अप्रिय, और गर्हित ऐसे पांच प्रकार के असत्य वचन हैं। उसमें से ' आत्मा कोई पदार्थ नहीं है । ऐसे वचनोंको सदलपन कहते हैं क्योंकि ऐसे वचनों में वास्तवमें जिसकी सत्ता है और जिसके द्वारा वह कह रहा है ऐसे आत्माका अपलपन अर्थात् निषेध किया गया है। " यह आत्मा समस्त जगतमें व्याप्त है अथवा चांवलकी कणिकाके समान है " ऐसे वचनोंको असदुद्भावन कहते हैं । क्योंकि ऐसे वाक्यों में आत्माका जो परिमाण कहा गया है वह वास्तविक नहीं है। इसलिये जिन वचनोंसे वा. स्तविक न होने पर भी कल्पना किया जाता है ऐसे वचनोंको असदुद्भावन कहते है। गायको घोडा कहना विपरीत है। कानेको काना कहना अप्रिय है । क्योंकि काने मनुष्यको काना कहना अप्रिय लगता है। अरे वेश्या पुत्र ! विधवा पुत्र ! आदि कहना गहित वा निंद्य वचन हैं, इन्हें साक्रोश भी कहते हैं । ये पांचप्रकारके असत्य वचन व्रतीश्रावकको अवश्य छोड देने चाहिय ॥ ४४ ॥ कारण बतलाया है इसलिये हेय उपादेय आदि अनुष्ठानोंका कहना भी झूठ नहीं होता । भावार्थ-झूठवचनके त्यागी महामुनि बारबार हेयो. पादेयका उपदेश देते हैं उनके पापनिंदक वचन पापी जीवोंको तीरसे | अप्रिय लगते हैं उन्हें सुनकर सैकडों पापी जीव दुखी होते हैं परंतु उन मुनिराजको असत्य भाषणका दोष नहीं लगता, क्कोंकि उनके बचनोंमें कषाय और प्रमाद नहीं है।