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________________ २७२] चौथा अध्याय सदलपन, असदुद्भावन, विपरीत, अप्रिय, और गर्हित ऐसे पांच प्रकार के असत्य वचन हैं। उसमें से ' आत्मा कोई पदार्थ नहीं है । ऐसे वचनोंको सदलपन कहते हैं क्योंकि ऐसे वचनों में वास्तवमें जिसकी सत्ता है और जिसके द्वारा वह कह रहा है ऐसे आत्माका अपलपन अर्थात् निषेध किया गया है। " यह आत्मा समस्त जगतमें व्याप्त है अथवा चांवलकी कणिकाके समान है " ऐसे वचनोंको असदुद्भावन कहते हैं । क्योंकि ऐसे वाक्यों में आत्माका जो परिमाण कहा गया है वह वास्तविक नहीं है। इसलिये जिन वचनोंसे वा. स्तविक न होने पर भी कल्पना किया जाता है ऐसे वचनोंको असदुद्भावन कहते है। गायको घोडा कहना विपरीत है। कानेको काना कहना अप्रिय है । क्योंकि काने मनुष्यको काना कहना अप्रिय लगता है। अरे वेश्या पुत्र ! विधवा पुत्र ! आदि कहना गहित वा निंद्य वचन हैं, इन्हें साक्रोश भी कहते हैं । ये पांचप्रकारके असत्य वचन व्रतीश्रावकको अवश्य छोड देने चाहिय ॥ ४४ ॥ कारण बतलाया है इसलिये हेय उपादेय आदि अनुष्ठानोंका कहना भी झूठ नहीं होता । भावार्थ-झूठवचनके त्यागी महामुनि बारबार हेयो. पादेयका उपदेश देते हैं उनके पापनिंदक वचन पापी जीवोंको तीरसे | अप्रिय लगते हैं उन्हें सुनकर सैकडों पापी जीव दुखी होते हैं परंतु उन मुनिराजको असत्य भाषणका दोष नहीं लगता, क्कोंकि उनके बचनोंमें कषाय और प्रमाद नहीं है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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