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सागारधर्मामृत
[२५३ | और वही भोजन रात्रिमें खानेवालोंको खाना पड़ता है। ये सब परोक्ष दोष हैं। बाहरमें दिखाई नहीं पडते परंतु लगते अवश्य हैं । इसके सिवाय जिस वस्तुके खानेका त्याग कर दिया है वह वस्तु भी यदि भोजनमें मिल जायगी तो रात्रिमें उसका पहिचानना असंभव हो जायगा और विना पहिचाने वह वस्तु भी खानी पडेगी। इसप्रकार रात्रिमें खानेवालेको यह परोक्ष दोष भी लगता हैं । इसतरह रात्रि में खानेवालोंको ऊपर लिखे हुये चारप्रकारके दोष लगते हैं। रात्रिमें खानेवाला इन चारप्रकारके दोषोंसे कलंकित भोजन करता हुवा भी आपको सुखी मानता है ! ग्रंथकार उसकोलये आश्चर्य और दुःख प्रकाश करते हैं। भावार्थ-ऊपर लिखे हुये अनेक दोषोंसे कलंकित ऐसा रात्रिभोजन करनेवाला पुरुष इस लोक और परलोक दोनोंमें दुःखी होता है वह कभी सुखी नहीं हो सकता । इस लोकमें उसे अनेक तरहके रोग भोगने पडते हैं और परलोकमें अनेक जीवोंकी हिंसाके पापसे दुर्गतियोंके अनेक दुख भोगने पड़ते हैं ॥ २५ ॥
आगे--चनमालाका दृष्टांत देकर रात्रिभोजनके दोषका | महान्पना दिखलाते हैं--
त्वां यद्युपैमि न पुनः सुनिवेश्य रामं लिप्ये वधादिकृदधैस्तदिति श्रितोऽपि । सौमित्रिरन्यशपथान् वनमालथैकं दोषाशिदोषशपथं किल कारितोऽस्मिन् ॥ २६ ॥