Book Title: Sagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pandit, Lalaram Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 308
________________ २५८ ] चौथा अध्याय ____ अर्थ-जो सूके नहीं हैं गीले हैं ऐसे चमडा, हड्डी, मद्य, मांस, रुधिर, पीव, चर्मी अंतड़ी आदि पदार्थों को देखकर या छूकर तथा रजस्वला स्त्री, सूका चमडा, सूकी हड्डी, कुत्ता, आदि शब्दसे बिल्ली और चांडाल आदिका स्पर्श हो जानेपर तथा " इसका मस्तक काट लो" इत्यादि अत्यंत कर्कश शब्द, हाय हाय ऐसे आर्तनाद, परचक्रका आना, महामारीका फैलना आदि शब्दोंके सुन लेनेपर तथा जिस वस्तुका त्याग कर दिया है उसके भोजन करलेनेपर, तथा जिन्हें भोजनमेंसे अलग नहीं कर सकतें ऐसे जीवित दो इंद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रिय जीवोंके संसर्ग हो जानेपर ( मिलजानेपर ) अथवा तीन चार आदि मरे हुये जीवोंके मिल जानेपर और खानेकी वस्तुमें यह मांस है, यह रुधिर है, यह हड्डी है, यह सर्प है ऐसा मनमें संकल्प हो जानेपर व्रती श्रावकको उस समयका आहार छोड़ देना चाहिये । भावार्थ-ऊपर लिखे हुये सब श्रावकके भोजन के अंतराय हैं । इन अंतरायोंके आनेपर श्रावकको उससमयका भोजन छोड देना चाहिये, दूसरे किसी समय वह भोजन कर सकता है ॥३१-३२-३३॥ आगे--मौन धारण करना भी अहिंसाणुव्रतका शील है इसलिये मौन धारण करनेका व्याख्यान भी पांच श्लोकोंमें कहते हैं

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