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सागारधर्मामृत
[२६१ __ अर्थ-भोजन आदिमें अतिचार रहित शुद्ध 'मौनव्रत पालन करनेसे मन वश हो जाता है तथा मन वश होनेसे वह
साधु अर्थात् संयमी मुनि अथवा देशसंयमी गृहस्थ शुक्लध्यान | करने योग्य हो जाता है और उसी शुद्ध मौनव्रतसे वचनकी सिद्धि होनेसे अर्थात् एक साथ तीनों लोकोंका अनुग्रह करनेमें समर्थ ऐसी सरस्वतीकी विभूति प्राप्त हो जानेसे वह गृहस्थ वा मुनि एक साथ तीनों लोकोंके भव्य पुरुषोंका उपकार करने योग्य हो जाता है ।। ३६ ॥
१. संतोषं भाव्यते तेन वैराग्यं तेन दय॑ते । संयमः पोष्यते तेन मौनं येन विधीयते ॥ अर्थ-जो मौन धारण करता है वह अपना संतोष बढाता है वैराग्य दिखाता है और संयमको पुष्ट करता है ऐसा समझना चाहिये।
लौल्यत्यागात्तपोवृद्धिराभिमानस्य रक्षणं । ततश्च समवाप्नोति। मनःसिद्धिं जगत्रये ॥ अर्थ-लोलुपताका त्याग करनेसे तपकी वृद्धि होती है, किसीसे याचना नहीं करना इस अभिमानकी रक्षा होती है और उससे तीनों लोकोंमें उसका मन वश हो जाता है।
श्रुतस्य प्रश्रयाच्छेयः समृद्धेः स्यात्समाश्रयः । ततो मनुजलोकस्य प्रसीदति सरस्वती ॥ अर्थ-मौन धारण करनेसे श्रुतज्ञानका विनय होता है और उससे पुण्यकी वृद्धि होती है और उस पुण्यके निमित्तसे मनुष्यपर सरस्वती प्रसन्न होती है।
वाणी मनोरमा तस्य शास्त्रसंदर्भगर्भिता । आदेया जायते येन क्रियते मौनमुज्वलं ॥ अर्थ-जो गृहस्थ निर्दोष मौनव्रत पालन करता
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