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चौथा अध्याय
करनेवाले मध्यम पुरुष दिनमें दो वार भोजन करते हैं, और पाप कर्म करनेवाले अधम पुरुष सर्वज्ञ देवके द्वारा कहे हुये रात्रि भोजन त्यागरूप व्रतके अनेक उपकार करनेवाले गुणों को नहीं जानते हुये गाय भैंस आदि पशुओं के समान रातदिन खाते रहते हैं ॥ २८ ॥
आगे -- शास्त्रों के उदाहरणों के विना जो संसार में सब लोगों के अनुभवमें आरहा है ऐसा रात्रिभोजनत्यागका विशेष फल दिखलाते हैं
योऽत्ति त्यजन् दिनाद्यंतमुहूर्ती रात्रिवत्सदा । स वर्ण्यतोपवासेन स्वजन्मार्द्ध नयत् कियत् ।। २९ ॥ अर्थ — जो गृहस्थ रात्रि के समान प्रातःकाल सूर्योदयके अनंतर दो घडी और सायंकाल सूर्यास्त के पहिले दो छोड़कर बाकी बचे हुये दिनमें सदा भोजन करता है, वह अपना आधा जन्म चारों प्रकारके आहारके त्यागरूप उपवाससे व्यतीत करता है अर्थात् उसने आधे जन्मतक बराबर उपवास किया ऐसा समझा जाता है, इसलिये सज्जनपुरुष उसकी कितनी स्तुति करें ? भावार्थ - - वह अपार स्तुति के योग्य है। यहांपर अर्ध शब्दका अर्थ बराबर आधा अथवा कुछ अधिक आधा समझना चाहिये । क्योंकि वह सूर्योदय से दो घड़ी और सूर्यास्त के पहले दो घडीके साथसाथ रात्रिमें भोजनका त्याग करता है इसलिये उसका आधे जन्मसे कुछ अधिक भाग उपवास सहित होता है ॥ २९ ॥
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