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सागारधर्मामृत
[१११ Ananamamanan एक प्रकारका हर्ष प्रगट होता है। अभिप्राय यह है कि जिन मंदिर स्वाध्यायशाला आदि बनवानेसे धर्मकी रक्षा और वृद्धि होती है उससे खेती व्यापार आदि हिंसारूप आरंभ करनेवाले भी पुण्य इकठा करलेते हैं और सम्यग्दर्शनकी विशुद्धि हो जानेसे एकतरहका हर्ष बना रहता है । इस श्लोकमें धर्मानुबंधका महत् अर्थात् बडा भारी विशेषण देकर ग्रंथकारने यह दिखलाया है कि यद्यपि जिनमंदिर आदि बनवानेमें हिंसादि | दोष लगते हैं परंतु वे दोष नहीं है पुण्यबंधके कारण हैं। | किसी ग्रंथमें कहा भी है ' तत्पापमयि न पापं यत्र महान्धर्मानुबंधः' अर्थात् वह पाप भी पाप नहीं है कि जिसमें बडा भारी धर्मानुबंध हो ॥ ३५ ॥
आगे--इस कलिकालमें प्रायः विद्वान् पुरुषोंका चित्त भी जिनप्रतिमाके देखनेसे ही जिनेंद्रदेवकी सेवा पूजा करने में तत्पर होता है इसलिये इस कलिकालको धिक्कार देते है--
धिग्दुःषमाकालरात्रिं यत्र शास्त्रदृशामपि ।
चैत्यालोकाते न स्यात्प्रायो देवविशा मतिः ॥ ३६॥
* अर्थ यह पंचमकाल एक प्रकारकी कालरात्रि अर्थात् | मरनेकी रातके समान है क्योंकि इसमें ऐसे तीन मोहनीय कर्मका उदय होता है जो किसीसे, निवारण नहीं किया जा सकता इसलिये इस पंचमकाळको धिक्कार हो। इसे धिक्कार
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