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सागारधर्मामृत
[ १९१ (छाछमें मोठ जौ बाजरीके आटेको मिलाकर और खट्टी हो जानेपर औटाते हैं उसे राबडी अथवा कांजी कहते हैं।) भी नहीं खाना चाहिये । यदि वह इन पदार्थोंको सायगा बो मवत्याग व्रतमें अतिचार लगेंगे । भावार्थ-ये ऊपर लिखे हुये मद्यत्याग व्रतके अतिचार हैं, दर्शनिक श्रावकको इन्हें बिल्कुल छोड देना चाहिये ॥ ११ ॥ आगे--मांसत्यागवतके अतिचार कहते हैं
चर्मस्थमंभः स्नेहश्च हिंग्वसंहृतचर्म च । सर्व च भोज्यं व्यापन्नं दोषः स्यादामिषव्रते ॥ १२ ॥
अर्थ--चमडेके वर्तनमें रक्खा हुआ जल, घी, तेल आदि, चमडेकी लपेटी हुई या उसमें रक्खी हुई हींग और जो स्वादसे चलित हो गये हैं ऐसे घी आदि समस्त पदार्थ इनका सेवन करना मांसत्याग व्रतके अतिचार हैं। भावार्थ-चरस मसक आदि चमड़ेके वर्तनोंमें रक्खा हुआ वा चमड़ेके वर्तनसे निकाला हुआ जल, कुप्पा आदि चमड़ेके वर्तनमें रक्खा हुआ तेल घी आदि पदार्थ, चमड़ेके वर्तनोंमें वा जो चमड़ेसे गसी गई है ऐसी टोकनीमें, तलवारकी म्यान आदिमें रक्खे हुये आम आदि फल, चमड़ेकी बनी हुई चालनी, सूप, तराजू आदिमें निकाला हुआ आटा आदि पदार्थ, जिसने चमड़ा और मांसको हींगरूप नहीं बना लिया है ऐसी चमड़ेमें रक्खीहुई चमडेमें बंधी हुई चमडेसे ढकीहुई वा चमडेपर