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चौथा अध्याय तथा अप्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ ये आठों कषाय शांत हो गये हैं अथवा जिसने ये आठों कषाय शांत कर दिये हैं, तथा जो आगेके दो श्लोकोंमें लिखे अनुसार मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदनासे अर्थात् नौ प्रकारसे संकल्पपूर्वक द्वींद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रिय और पंचेंद्रिय जीवोंकी हिंसा नहीं करता है।
और जो दयालु है अर्थात् जिसका अंतःकरण करुणासे कोमल है, कारण पडनेपर स्थावर जीवोंका घात करता है तथापि | उसके हृदयमें उससमय भी बहुत दया आती है। ऐसे भव्य जीवके पहिला अहिंसा अणुव्रत होता है । ___यहांपर कृत कारित अनुमोदना तीनोंका ग्रहण किया है, उसमें कृतका ग्रहण अपनी स्वतंत्रता दिखलानेके लिये है, कारितका ग्रहण किसी दूसरे मनुष्यकेद्वारा करानेकी अपेक्षासे है और अनुमोदनाका ग्रहण मनके परिणाम दिखलानेके लिये है। भावार्थ-वह न स्वयं करता है, न किसी दूसरेसे कराता है और न करते हुयेको भला मानता है । इसी विषवको स्पष्ट रीतिसे दिखलाते हैं । (१) मनसे त्रस जीवोंकी हिंसा करनेका त्याग करना अर्थात् मनमें कभी मारनेका संकल्प नहीं करना । (२) मनसे हिंसा कराने का त्याग करना अर्थात् मनमें कभी दूसरेसे हिंसा करानेका संकल्प नहीं करना । (३) मनसे हिंसामें अनुमति नहीं देना अर्थात् किसी दूसरेने की हुई हिंसामें | " उसने अच्छा किया" इसप्रकार मनसे अनुमोदना नहीं