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चौथा अध्याय शुभ परिणाम पुण्यबंधके कारण हैं अशुभ परिणाम पापबंधके कारण हैं और शुद्ध परिणाम ( शुद्धोपयोग ) मोक्षके कारण हैं यदि येसा न माना जाय तो किसी भी जीवको मोक्ष न हो सके, क्योंकि इस लोकमें कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं है जहां असंख्यात और अनंत जीव न भरे हों। फिर ऐसे लोकमें रहकर हलन चलन आदि क्रियायें करता हुआ हिंसासे कैसे बच सकता है ? और हिंसासे बचे विना पुण्यबंध और मोक्ष कैसे हो सकता है। इसलिये आत्माके दया क्षमारूप शुभ परिणामोंसे पुण्यबंध और शुद्ध परिणामोंसे मोक्ष होता है । दया क्षमा रूप परिणाम होते हुये उसके हलन चलन आदिमें जीवोंका घात होते हुये भी हिंसा नहीं गिनी जाती क्योंकि उसके परिणाम हिंसा करनेके नहीं है, इसप्रकार दयाधर्मको धारण करनेवाले श्रावकों के अहिंसाणुव्रत सहज रीतिसे पल सलता है । २३ ॥
इसप्रकार अतिचारोंको छोडकर अहिंसाणुव्रत के पालन करनेका उपदेश दे चुके । अब आगे--रात्रिभोजन त्याग रूप व्रतके जोरसे अहिंसाणुव्रत पालन करना चाहिये ऐसा उपदेश देते हैं
अहिंसावतरक्षार्थ मूलव्रतविशुद्धये । नक्तं भुक्तिं चतुर्धापि सदा धीरस्त्रिधा त्यजेत् ॥ २४ ॥