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सागारधर्मामृत
[२४९ करना राजकथा है और दक्षिण देशमें अन्नकी उपज अधिक है वहांके निवासी भी अधिक विलासी हैं, पूर्वदेशमें अनेक तरह के वस्त्र गुड, शक्कर, चावल आदि होते हैं, उत्तर देशके पुरुष शूर होते हैं, घोडे तेज होते हैं, वहां गेंहू बहुत होते हैं, कुंकुम, दाख, दाडिम आदि सुलभतासे मिलते हैं, पश्चिमदेशमें कोमल वस्त्र होते हैं, ईख बहुत और पानी स्वच्छ होता है इत्यादि वर्णन करना देशकथा है । इसप्रकार ये चार विकथायें हैं । यदि ये ही कथायें रागद्वेषरहित धर्मकथाके रूपसे केवल अर्थ और काम पुरुषार्थ दिखानेकेलिये कही जायं तो विकथा नहीं कहलाती । इसीतरह प्रणय भी यदि धर्मका विरोधी हो तो प्रमाद होता है नहीं तो नहीं। इसप्रकार इन प्रमादोंको छोडकर प्रत्येक श्रावकको दया पालन करना उचित है ॥२२॥
आगे-अहिंसाणुव्रतं पालन करना कठिन है ऐसी गृहस्थकी शंकाका निराकरण करते हैं
विश्वग्जीवचिते लोके व चरन् कोऽप्यमोक्ष्यत भावैकसाधनौ बंधमोक्षौ चेन्नाभविष्यतां ॥ २३ ॥
अर्थ--यदि बंध और मोक्षका उत्कृष्ट प्रधान कारण आत्माके परिणाम न होते तो त्रस स्थावर जीवोंसे चारोंओरसे भरे हुये इस लोकमें कहां निवास करता हुआ यह मोक्षकी इच्छा करनेवाला कोई भी जीव मुक्त होता? भावार्थ-आत्माके