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सामारधर्मामृत
[ २२७ करना । ( ४ ) वचन से हिंसा नहीं करना अर्थात् मैं मारता हूं ऐसा शब्द उच्चारण नहीं करना । (५) वचनसे हिंसा नहीं कराना अर्थात् " तू मार वा हिंसा कर " इसप्रकार वचनसे नहीं कहना । (६) बचनसे हिंसाकी अनुमोदना नहीं करना अर्थात् जो हिंसा किसी दूसरेने की है उसमें " उसने अच्छा किया अथवा तूने अच्छा किया " इसप्रकार शब्दों का उच्चारण नहीं करना अथवा ऐसे शब्द मुंहसे नहीं निकालना । ( ७ ) कायसे हिंसा नहीं करना अर्थात् त्रस जीवोंकी हिंसा करने केलिये स्वयं हाथ थप्पड आदि नहीं उठाना अथवा किसी जीवकी हिंसा करने केलिये शरीरका कोई व्यापार नहीं करना । कायसे हिंसा नहीं कराना अर्थात् त्रस जीवोंकी हिंसा करने केलिये उंगली आदिसे इशारा नहीं करना अथवा और भी शरीरसे किसी तरह की प्रेरणा नहीं करना । तथा काय से हिंसा में अनुमतिनहीं देना अर्थात् जो कोई त्रस जीवकी हिंसा करनेमें प्रवृत्त हो रहा है उसकेलिये ताली या चुटकी बजाकर सम्मति नहीं देना । इसप्रकार नौ प्रकारके संकल्प होते हैं इन नौप्रकार के संकल्पोंसे त्रस जीवोंकी हिंसाका त्याग करदेना उत्कृष्ट अहिंसाणुव्रत हैं ॥७॥ आगे-दो श्लोकों से इसी विषयको स्पष्ट करते हैंइमं सत्त्वं हिमस्मीमं हिंधि हिंध्येष साध्विमं । निस्तीति वदन्नाभिसंदध्यान्मनसा गिरा ॥ ८॥ वर्तेत न जीववधे करादिना दृष्टिमुष्टिसंधाने । न च वर्तयेत्परं तत्परे नखच्छोटिका न च रचयेत् ||९||