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आगे--स्थूल इस विशेषणका प्रयोजन दिखलाते हैंस्थूलहिंसाद्याश्रयत्वात्स्थूलानामपि दुर्दशां। तत्त्वेन वा प्रसिद्धत्वावधादि स्थूलमिष्यते ॥६॥
अर्थ--जिसके आश्रय होकर हिंसा आदि पाप किये जाते हैं वह स्थूल हो अर्थात् जिस जीवकी हिंसा करना है वह स्थूल वा बादर अथवा त्रस हो, जिसके विषयमें झूठ बोलना है वह कोई बड़ी बात हो, जिसको चोरी करना है वह बड़ी अर्थात् कीमती हो, जिस स्त्री के साथ संभोग करना है वह स्थूल अर्थात् दूसरेकी हो, अपनी न हो, जिस वस्तुका संग्रह करना है वह भी बहुत हो । ऐसे ऐसे स्थूल पदार्थों के आश्रय होनेवाले जो हिंसा आदि पांचों ही पापकर्म हैं वे स्थूलवधादि कहलाते हैं । अथवा सूक्ष्मज्ञानसे रहित ऐसे मिथ्यादृष्टि लोगोंमें भी जो हिंसा झूठ चोरी आदि पापरूपसे ही प्रसिद्ध हों उन्हें स्थूलवधादि (स्थूल हिंसा आदि ) कहते हैं । वा शब्दसे जो हिंसा झूठ चोरी आदि स्थूलरूपसे किये जाते हैं वे भी स्थूलहिंसा आदि ही कहलाते हैं । भावार्थ--जो हिंसा झूठ चोरी आदि लोकमें प्रसिद्ध हैं, उन्हींका त्याग करना अणुव्रत है ॥६॥ आगे--उत्सर्गरूप अहिंसाणुव्रतको कहते हैं
शांताद्यष्टकषायस्य संकल्पैर्नवभिखसान् । अहिंसतो हयार्द्रस्य स्यादहिंसेत्यणुव्रतं ॥७॥ अर्थ--जिसके अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ
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