________________
सागारधर्मामृत
[ २४१
mmiman प्राणहानिको नहीं गिनता हुआ बांधने वा मारनेमें प्रवृत्त होता है, परंतु उससे उस जीवका घात नहीं होता। इसप्रकार निर्दयताके त्यागकी अपेक्षा न करके बांधने वा मारनेमें प्रवृत्त होनेसे अंतरंग व्रतका भंग होता है और हिंसा न होनेसे बहि. रंग व्रतका पालन होता है । इसलिये व्रतके एकदेश भंग होनेसे और एक देश पालन होनेसे बांधने, मारने आदिको अतिचार संज्ञा ही होती है। वही बात अन्य आचार्योंने भी लिखी है-जैसे"न मारयामीति कृतव्रतस्य विनैव मृत्युं क इहातिचारः । निगद्यते यः कुपितो वधादीन् करोत्यसौ स्यान्नयमानपेक्षः। मृत्योरभावानियमोऽस्ति तस्य कोपायाहीनतया हि भंगः । देशस्य भंगादनुपालनाच पूज्या अतीचारमुदाहरंति ॥२॥" __अर्थात्-जिसने “मैं किसी जीवकी हिंसा नहीं करूंगा" ऐसा व्रत धारण किया है उसके क्रोध करने वा किसीको बांधनेमें कभी अतिचार नहीं हो सकते क्योंकि बांधने वा क्रोध करनेमें किसी तरहकी हिंसा नहीं होती और न उसने बांधने वा मारनेका त्याग ही किया है । कदाचित् कोई ऐसी शंका करे तो उसका समाधान यह है कि क्रोध करना वा मारना बांधना आदि हिंसाके कारण हैं, जब यह व्रती श्रावक बुरे परिणामोंसे पशुओंके बांधने वा मारनेमें प्रवृत्त होता है उससमय उसके