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सागारधर्मामृत
[२५] और दूसरा निरपेक्ष अर्थात् जो विना किसीकी अपेक्षासे किया गया है । घोडा बैल आदि जानवरोंको जो रस्सीकी ढीली गांठसे बांधते है कि जिससे अमि आदि लगनेपर अथवा और कोई उपद्रव होनेपर वे जानवर उसे गांठ वा रस्सीसे स्वयं छूट सकें अथवा उसे तोड सकें । इसे सापेक्ष बंधन कहते हैं।। तथा इन्हीं जानवरोंको दृढतापूर्वक बहुत कड़ी रीतिसे बांधना | निरपेक्ष बंधन है । इसीप्रकार दासी, दास, चोर, जार तथा प्रमादी पुत्र शिष्य आदिकोंको भी जब बांधना पडें तो उन्हें | इसरीतिसे बांधना चाहिये कि जिसमें वे हलचल सकें । बंधम करनेवालों को यह वात भी ध्यानमें रखना चाहिये कि जिसको बंधनमें रक्खा है उसकी रक्षा भी पूर्ण रीतिसे की जाय कि जिससे अमि आदिसे उसका विनाश न हो जाय । अथवा दासी, दास आदि द्विपद और घोडा, बैल आदि चतुष्पद, इन सबका संग्रह श्राबकको इसप्रकार करना चाहिये अथवा ऐसे दासी दास घोडा बैल आदिकोंका संग्रह करना चाहिये कि जो विना बांधे ही रह सकें। इसप्रकार बंध नामका अहिंसा अणुव्रतका पहिला अतिचार है।
वध-लकडी चाबुक आदिसे मारनेको वध कहते हैं । वह भी यदि बुरे परिणामोंसे किया जाय तो बंधके समान अतिचार होता है । यदि कोई शिष्य या दास विनय वा नम्रता न करे तो उसके मर्मस्थानको छोड कर किसी लता अथवा