________________
अमृत
सागारधर्मामृत
[२१९ त्यागरूप अणुव्रत हैं वे मध्यम वृत्तिसे अणुव्रत कहे जाते है | अर्थात् वे मध्यम अणुव्रत हैं । गृहस्थ इन मध्यम अणुव्रतोंको ही पालन कर सकता है । क्योंकि यद्यपि वह हिंसादि पाप मन वचन कायसे न करता है और न कराता है परंतु उसके पुत्र पौत्र आदि जो हिंसादि पाप करते कराते हैं अथवा हिंसादिके कारण मिलाते हैं उसमें वह अपनी अनुमति वा संमतिका त्याग नहीं कर सकता और इसतरह वह अनुमोदनासे त्याग नहीं कर सकता इसलिये वह छहप्रकारसे हिंसादि पापोंका त्याग कर मध्यम अणुव्रत धारण करता है । इसप्रकार स्थूल हिंसादि पापोंके त्यागरूप जो अणुव्रत हैं उनके दो या तीन भेद होते हैं और इन तीनोंमेंसे कोई भी एक प्रकारका अणुव्रत धारण करना अच्छा और कल्याण करनेवाला ही है, क्योंकि अणुव्रत न धारण करनेसे जो बहुतसे हिंसादि पाप लगते हैं उनमेंसे जितने पाप छूट जायं उतने ही अच्छे हैं। इसलिये किसीप्रकारका भी अणुव्रत धारण कर लेना अच्छा है । श्लोकमें जो अपि शब्द दिया है वह यह सूचित करता है कि यदि किसी 'अन्यप्रकारसे भी स्थूल हिंसा आदि पापोंका त्याग किया जाय
१-इसका यह आभिप्राय है कि कोई मनुष्य स्थूल हिंसादि पापोंको स्वयं नहीं करता परंतु वह करानेका त्याग नहीं कर सकता अथवा मन वचनसे त्याग नहीं कर सकता, केवल शरीरसे त्याग करता है। यदि वह स्वयं करनेका ही त्याग कर दे या शरीरसे ही त्याग करदे अथवा केवल मनसे वा वचनसे ही त्याग कर दे अथवा और भी किसी किसी मर्यादासे थोडा बहुत त्याग कर दे तो वह उसका त्याग अणुव्रत ही गिना जायगा।