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सागारधर्मामृत
[ २१७ करें उन्हें गुणव्रत कहते हैं, दिग्नत आदि अणुव्रतोंको बढाते रहते हैं इसलिये वे गुणव्रत कहलाते हैं और वे तीन प्रकारके हैं । जो व्रत शिक्षा वा अभ्यासके लिये किये जाते हैं उन्हें शिक्षावत कहते हैं; देशावकाशिक, सामयिक आदि व्रतोंका प्रतिदिन अभ्यास किया जाता है इसलिये ये शिक्षाव्रत कहलाते है और वे चार प्रकार के हैं। गुणव्रत और शिक्षाव्रतोंमें यही भेद है कि शिक्षाव्रतोंका अभ्यास प्रतिदिन किया जाता है और गुणव्रत प्रायः जन्मभरके लिये धारण किये जाते हैं। अथवा विशेष श्रुतज्ञानकी भावनाओंमें परिणत होनेसे अर्थात् श्रुतज्ञानकी भावनाओंका चितवन करनेसे ही देशावकाशिक आदि शिक्षाव्रतोंका निर्वाह अच्छी तरह हो जाता है इसलिये जिनमें शिक्षाजनक विद्याओंका ग्रहण किया जाय अथवा जिनमें शिक्षा ही प्रधान हो उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं । इसप्रकार भी ये गुणव्रत वा अणुव्रतोंसे भिन्न हैं ॥ ४ ॥
आगे-सामान्य रीतिसे पांचों अणुव्रतोंका लक्षण कहते हैंविरतिः स्थूलवधादेर्मनोवचोंऽगकृतकारितानुमतैः । कचिदपरेऽप्यननुमतैः पंचाहिंसाद्यणुव्रतानि स्युः ॥५॥
अर्थ-स्थूल वध आदि अर्थात् स्थूल हिंसा,स्थूल असत्य, स्थूल चोरी, स्थूल अब्रह्म और स्थूल परिग्रह इन पांचों स्थूल |पापोंका मन वचन कायसे तथा कृतकारित अनुमोदनासे जो
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