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चौथा अध्याय तो वह भी अणुनत गिना जाता है । क्योंकि जो व्रत अपनी शक्तिके अनुसार पालन किया जाता है उसीका निर्वाह सुखपूर्वक होता है और उससे इस जीवका कल्याण होता है।
पापोंके त्याग करनेके भेद मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना इनके संबंधसे उनचास होते हैं। जैसे हिंसा मनसे नहीं करना, वचनसे नहीं करना, शरीरसे (कायसे) नहीं करना, मन और वचनसे नहीं करना, मन और कायसे नहीं करना, वचन और कायसे नहीं करना तथा मन वचन काय इन तीनोंसे मिलकर नहीं करना । इसप्रकार कृत अर्थात् कर| नेके सात भेद हुये । इसीप्रकार कारित अर्थात् कराने के सात | भेद और अनुमोदना अर्थात् संमति देनेके सात भेद हुये । सब इकईस भेद हुये । तथा हिंसाके करने करानेका मनसे त्याग करना, वचनसे त्याग करना, कायसे त्याग करना, मन वचनसे त्याग करना, मन कायसे त्याग करना, वचन कायसे त्याग करना
और मन वचन काय तीनोंसे त्याग करना इसप्रकार करने करानेके सात भेद हुये । इसीप्रकार कृत अनुमोदना अर्थात् करने और संमति देनेके सात भेद, कारित और अनुमोदना अर्थात् कराने
और संमति देनेके सात भेद, और कृत कारित अनुमोदनाके सात भेद इसप्रकार सब अठाईस भेद ये हुये । 'सब मिलकर उनचास भेद हुये । ये उनचास नीचे लिखे कोष्टकसे स्पष्ट जान पड़ते हैं