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२१८] चौथा अध्याय त्याग करना है उसे अणुव्रत कहते हैं और वह अणुव्रत अहिंसा सत्य, अचौर्य,ब्रह्मचर्य और परिग्रहपरिणामके भेदसे पांचप्रकारका है । इसमें भी इतना विशेष और है कि इन अणुव्रताको धारण करनेवाले श्रावक दो प्रकारके होते हैं एक तो वे कि जो घरमें रहनेसे विरक्त हो चुके हैं अर्थात् जिन्होंने घर रहना छोड दिया है, जो उदासीन होगये हैं, और दूसरे वे जो घरमें ही रहते है अर्थात् जो गृहस्थ हैं । इन दोनोंमेंसे जो उदासीन वा घरसे विरक्त श्रावक हैं उनके तो मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना इन नौप्रकारसे पांचों स्थूल पापोंका त्यागरूप अणुव्रत होते है और जो गृहस्थ श्रावक हैं उनके अनुमतिका त्याग नहीं होता उनके मन वचन काय और कृत कारित ऐसे छह प्रकारसे ही पांचों स्थूल पापोंका त्याग होता हैं।
आगे--इसीको कुछ विस्तारसे लिखते हैं जिसमें स्थूल जीवोंका घात होता हो अथवा अन्य मिथ्यादृष्टियों में भी जो हिंसारूपसे प्रसिद्ध हो उसे स्थूल हिंसा कहते हैं इसीतरह झूठ चोरी आदि भी जो सब जगह प्रसिद्ध हों और स्थूल विषयक हों वे स्थूल चोरी झूठ आदि कहे जाते हैं । इन स्थूल हिंसा झूठ चोरी अब्रह्म और परिग्रह पांचों स्थूल पापोंका मन वचन काय, कृत कारित अनुमोदना इन नौप्रकारसे त्यागरूप जो अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य और परिग्रहपरिमाण पांच अणुवत हैं वे गृहत्यागी श्रावकके होते हैं और ये उत्कृष्ट भणुव्रत कहलाते हैं। तथा जो गृहस्थ श्रावकके मन वचन काय और कृतकारित इनके संबंधरूप छहप्रकारसे पांचों स्थूल पापोंका