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चौथा अध्याय आगे-उत्तरगुणोंका निर्णय करनेकेलिये कहते हैंपंचधाणुव्रतं त्रेधा गुणवतमगारिणां । शिक्षाव्रतं चतुति गुणाः स्युर्दादशात्तरे ॥४॥
अर्थ-पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षात्रत ये बारहनत गृहस्थों के उत्तरगुण हैं। यहांपर गुण शब्दका अर्थ संयमके भेद हैं। संयमके मूल भेदोंको मूलगुण और उत्तर भेदोंको उत्तरगुण कहते हैं । ये मद्यत्याग आदि आठ मूलगुण धारण करने के पीछे धारण किये जाते हैं और मूलगुणोंसे उत्कृष्ट हैं इसलिये इन्हें उत्तरगुण कहते हैं । महाव्रतोंकी अपेक्षा जो लघु वा छोटे हों उन्हें अणुव्रत कहते हैं और वे अहिंसा आदि पांच हैं। यह अणुव्रतोंकी पांच संख्या आचार्यों के बहुमतसे लिखी गई है अर्थात् प्रायः बहुतसे आचार्य पांच ही अणुव्रत मानते हैं । जो अणुव्रतोंकी संख्या पांच मानते हैं वे रात्रिभोजनत्यागवतको अहिंसा अणुव्रतकी भावना होनेसे उसीमें अंतर्भूत करलेते हैं परंतु किसी किसी आचार्यने रात्रिभोजनत्यागवतको छटा अणुव्रत माना है अर्थात् इसतरह अणुव्रतोंकी संख्या 'छह मानी है । जो अणुव्रतोंका उपकार
१-चारित्रासारमें लिखा है--
वधादसत्याचौर्याचकामाद्ग्रंथान्नवर्त्तनं । पंचधाणुव्रतं राज्यभुक्तिः षष्ठमणुव्रतं ॥ अर्थ-हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और पारग्रह इनका त्याग करना पांच अणुव्रत हैं तथा रात्रिभोजनत्याग भी छट्ठा अणुव्रत है।