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सागारधर्मामृत मार्गको अर्थात् दिखलाये हुये अणुव्रत आदिको धारण करनेवाला होता है" यह जो लिखा है उसका भी ग्रहण हो जाता है क्योंकि जब खेती व्यापार आदिमें होनेवाली हिंसाके सिवाय बाकी हिंसाका त्याग करादिया तब पांचों अणुव्रतोंके अनुकूल अपनी सब क्रियायें करने के लिये उपदेश हो ही चुका, अर्थात् अणुव्रतोंके अनुसार ही उसे सब क्रियायें करनी चाहिये । तथा अपने निर्वाह करनेयोग्य खेती व्यापार आदि आरंभोंको स्वयं न करना चाहिये, क्योंकि यदि वह खेती व्यापार आदि स्वयं करेगा तो प्रतिज्ञा किये हुये धर्मकार्योंके करनेमें अवकाश न मिलनेसे उसे बडी व्याकुलता उठानी पडेगी । यदि वह दूसरोंसे करावेगा तो एक काम घट जानेसे फिर उसे धर्मकार्यों में किसी तरहकी व्याकुलता नहीं होगी, इसलिये खेती व्यापार आदि आरंभ दूसरोंसे ही कराना ठीक है । इसके सिवाय जिसमें अपने प्रतिज्ञा किये हुये व्रतोंके पालन करनेमें किसीतरहकी हानि न हो इसप्रकारसे स्वामी की सेवा, खरीदना, वेचना आदि लौकिक क्रियाओंको स्वीकार करना चाहिये, अर्थात् जिस काम करनेमें अपने व्रतोंमें विरोध न आवे ऐसे कामोंके करनेकेलिये किसीतरहका विसंवाद या झगडा नहीं करना चाहिये । भावार्थ-दर्शनिक श्रावकको ये ऊपर | लिखी हुई सब शिक्षायें स्वीकार करना चाहिये ॥२५॥
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