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सागारधर्मामृत [ २०७ अन्नका अधिक सेवन करनेसे धर्म अर्थ और शरीर तीनों ही नष्ट होते हैं उसीप्रकार स्त्रीका अधिक सेवन करनेसे भी धर्म अर्थ और शरीर तीनों नष्ट हो जाते हैं ॥२९॥
आगे-सत्पुत्र उत्पन्न करनेकेलिये प्रयत्न करनेकी विधि बतलाते हैं
प्रयतेत सधर्मिण्यामुत्पादायतुमात्मजं । व्युत्पादयितुमाचारे स्ववत्त्रातुमथापथात् ॥३०॥
अर्थ-दर्शनिक श्रावकको सधर्मिणी अर्थात् जिसका धर्म सदा अपने समान है ऐसी कुल स्त्रीमें औरस पुत्र उत्पन्न करनेकेलिये प्रयत्न करना चाहिये । पुत्र का नाम आत्मज है जिसका अर्थ ' अपनेसे उत्पन्न हुआ' है । अपनेसे उत्पन्न हुये
ऐसे पुत्र के लिये कुलस्त्रीकी रक्षा करनेमें नित्य प्रयत्न वा परम | आदर करना चाहिये । तथा पुत्र को आचार अर्थात् लोक और लोकके व्यवहार में अपने समान अनेक तरहके उत्कृष्ट ज्ञान संपादन करानेका प्रयत्न करना चाहिये । तथा धर्मसे भ्रष्ट करनेवाले दुराचारसे उसकी रक्षा करनेकेलिये अपने समान ही सदा प्रयत्न करना चाहिये। भावार्थ-पुत्रके लिये स्त्रीकी रक्षा करनी चाहिये।
और पुत्र होनेपर उसे पारमार्थिक व्यावहारिक शिक्षा देकर तथा कुलपरंपरासे चली आई ऐसी विशेष बातोंको बतलाकर सब विषयमें निपुण कर देना चाहिये । तथा कुमार्गसे भी उसे सदा बचाते रहना चाहिये । यह वात ध्यानमें रहे कि इन सत्र |