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तीसरा अध्याय
सुखाई हुई हींग इसीप्रकार जमडेपर रक्खाहुआ चमडे में बंधा हुआ वा फैलायाहुआ नमक आदि पदार्थ और जिनका स्वाद बिगड गया है ऐसे घी भात आदि खाने के सब पदार्थ इन स तरह के पदार्थों का खाना मांसत्यागवतके अतिचार हैं । इसलिये मांस त्याग करनेवालोंको इन सबका त्याग करना चाहिये ॥ १३ ॥
आगे -- मधुत्याग व्रतके अतिचार दूर करनेके लिये कहते हैं-
प्रायः पुष्पाणि नाश्रीयान्मधुव्रतविशुद्धये । वस्त्यादिष्वपि मध्वादिप्रयोगं नार्हति व्रती ।। १३ ।।
अर्थ - - शहतके त्याग करनेवाले दर्शनिक श्रावकको उस मधुत्यागत्रतको विशुद्ध रखनेके लिये अर्थात् निरतिचार पालन करनेके लिये प्रायः किसी तरह के फूल नहीं खाना चाहिये । प्रायः शब्द कहने से यह तात्पर्य है कि महुआ और भिलावे आदिके फूल कि जिन्हें अच्छी तरह शोध सकते हैं उनके खानेका अत्यंत निषेध नहीं है, इसीप्रकार नागकेसर आदिके सूके फूलोंके खानेका भी अत्यंत निषेध नहीं है । तथा इसीतरह मधुविरत श्रावकको वस्तिकर्म, पिंडदान, नेत्रोंमें अंजन लगाना तथा मुंहमें मकडी आदिके चले जानेपर इलाज करना आदि कार्यों के लिये भी मद्य मांस मधुका उपयोग नहीं करना चाहिये । अपि शब्दसे यह सूचित होता है कि शरीरका
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