________________
AN
-
-
१९८]
तीसरा अध्याय _____ अर्थ-जिसने जूआ रेवलने का त्याग कर दिया है ऐसे | दर्शानक श्रावकको केवल मन प्रसन्न करनेकेलिये भी होड अर्थात् शर्त लगाकर दौडना या एक दूसरेकी ईर्षासे दौडना, आदि शब्दसे जूआ देखना आदि भी उसके व्रतमें दोष उत्पन्न करनेवाले हैं अर्थात् अतिचार हैं । जब केवल मन प्रसन्न करनेकेलिये शर्त लगाना दोष है तब फिर धन मिलनेकी इच्छासे शर्त लगाना या शर्त लगाकर कोई काम करना दर्शनिक श्रावककेलिये बडा भारी दोष है इसका भी कारण यह है कि शर्त लगाने या जूआ देखने से हर्ष और क्रोध उत्पन्न होता है
और हर्ष तथा क्रोध अर्थात् रागद्वेष परिणाम परमार्थसे पापके कारण हैं इसलिये शर्त लगाने किंवा जूआ देखने आदिसे पाप ही उत्पन्न होता है ॥ १९ ॥
आगे--वेश्यात्यागवतके अतिचार छोडनेके लिये कहते हैंत्यजेत्तौर्यत्रिकासक्तिं वृथाट्यां षिङ्गसंगतिं । नित्यं पण्यांगनात्यागी तद्नेहगमनादि च ॥ २० ॥
अर्थ-जिसने वेश्यासेवनका त्याग कर दिया है ऐसे श्रावकको गीत नृत्य और बाजे इन तीनोंमें आसक्त नहीं होना चाहिये, विना प्रयोजन इधर उधर फिरना नहीं चाहिये, विट व्यभिचारी लोगोंकी संगति नहीं करनी चाहिये और वेश्याके घर आना जाना उसके साथ बातचीत करना और उसका आदर सत्कार करना आदिका भी सर्वथा त्याग कर
DAHAL
AAAAAAAACHAR