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सागारधर्मामृत
[ १९३ स्वास्थ्य रखनेकेलिये वाजीकरण आदि वीर्य बढानेवाली औषधियोंमें भी मद्य मांस और मधुका उपयोग नहीं करना चाहिये ॥ १३ ॥
आगे--पंचोदुंबरत्याग व्रतके अतिचार दूर करनेके लिये कहते हैं
सर्व फलमविज्ञातं वार्ताकादि त्वदारितं । तद्वद्भल्लादिसिंबीश्च खादेन्नोदुंबरव्रती ॥ १४ ॥
अर्थ---पीपलफल आदि उदंबर फलोंके त्याग करनेवाले श्रावकको अजानफल जिन्हें वह नहीं पहचानता है नहीं खाना चाहिये तथा ककडी वा कचरियां, वेर, सुपारी आदि फलोंको और रमास मटर आदिकी फलियोंको विदारण किये विना अर्थात् मध्यभागको शोधन किये विना नहीं खाना चाहिये । भावार्थ-अजानफल तथा भीतर विना देखे हुये फल फलियां आदि उदंबर त्याग व्रतके अतिचार हैं । उदंबर त्यागीको इनका त्याग अवश्य कर देना चाहिये ॥ १४ ॥
आगे-रात्रिभोजनत्यागवतके अतिचार कहते हैंमुहूर्तेऽत्ये तथाऽऽहो वल्भानस्तमिताशिनः । गदच्छिदेऽप्यानघृताधुपयोगश्च दुष्यति ॥१५॥
अर्थ-जिसको सूर्य अस्त होनेके पहिले ही भोजन करनेकी प्रतिज्ञा है ऐसे श्रावकको दिनके पहिले और अंतके