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सागारधमामृत
[ १८९ ॥ | मद्यमांस आदिका व्यापार भी नहीं करना चाहिये ऐसा दिखलाते हैं
मद्यादिविक्रयादीनि नार्यः कुर्यान्न कारयेत् । न चानुमन्येत मनोवाकायैस्तद्वतद्युते ॥ ९॥
अर्थ--मद्यविरति आठ मूलगुणोंको निर्मल करनेके लिये दर्शनिक श्रावकको मद्य मांस मधु मक्खन आदि पदार्थ नहीं बेचना चाहिये अर्थात् इनका व्यापार नहीं करना चाहिये। आदि शब्दसे अचार मुरब्बा आदिके बनानेका उपदेश भी नहीं देना चाहिये न इनकी विधि आदि बतलाना चाहिये । तथा इनका व्यापार आदि दूसरेसे भी नहीं कराना चाहिये और न मन वचन कायसे दूसरेके व्यापार आदि करने में सम्मति देना चाहिये अथवा अनुमोदना भी नहीं करनी चाहिये ॥९॥
आगे--जिनके संबंधसे मद्यत्याग आदि व्रतोंमें हानि पहुंचती है उनका उपदेश देते हैं
भजन्मद्यादिभाजः स्त्रीस्तादृशैः सह संसृजन् । भुक्त्यादौ चैति साकीर्ति मद्यादिविरतिक्षतिं ।। १० ॥
अर्थ--जो व्रती पुरुष मद्यमांस आदि भक्षण करनेवाली स्त्रियोंको सेवन करता है, अथवा मद्यमांस आदि खानेवाले लोगोंके साथ भोजन' वर्तन आसन आदिका संबंध रखता है,
१-मद्यादिस्वादिगेहेषु पानमन्नं च नाचरेत् । तदामत्रादिसंपर्क न कुर्वीत कदाचन ॥ अर्थ-मद्यमांस आदि सेवन करनेवालके घर