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सागारधर्मामृत [१३३ सार अपना और वरका कल्याण सूचित करनेवाले लक्षण विद्यमान हैं ऐसी कन्याको जिसमें वरके योग्य कुल, शील, माता पिता आदि गुरुजन, विद्या, धन, सुंदरता, योग्य उमर
और कन्याको ग्रहण करनेकी इच्छा आदि जो जो गुण हैं वे सब विचार करनेवालोंके चित्तमें साफ दिखाई दे रहे हैं । ऐसे साधर्मी पुरुषके लिये धर्मशास्त्रमें कही हुई 'विधिके अनुसार अग्नि द्विज और देवोंकी साक्षीपूर्वक ब्राह्म प्राजापत्य आर्ष और दैव इन चारों प्रकारके विवाहोंमेंसे
१-भगवजिनसेनाचार्य प्रणीत आदिपुराणमें विवाहकी | संक्षिप्त विधि इसप्रकार लिखी है
ततोऽस्य गुवनुज्ञानादिष्टा वैवाहिकी क्रिया । वैवाहिके कुले कन्यामुचितां परिण्येष्यतः ॥ सिद्धार्चनविधिं सम्यग्निवर्त्य द्विजसत्तमाः। . कृताग्नित्रयसंपूजाः कुर्युस्तत्साक्षिकां क्रियां ॥ .. पुण्याश्रमे क्वचित्सिद्धप्रतिमाभिमुखं तयोः । दपत्योः परया भूत्या कार्यः पाणिग्रहोत्सवः ॥ वेद्यां प्रणीतमग्नीनां त्रयं द्वयमथैककं । ततः प्रदक्षिणीकृत्य प्रशय्य विनिवेशनं । पाणिग्रहणदीक्षायां नियुक्तं तद्वधूवरं। आसप्ताहं चरेद्ब्रह्मव्रतं देवाग्निसाक्षिकं ॥ क्रांत्वा स्वस्योचितां भूमिं तीर्थभूमीविहृत्य च । स्वगृहं प्रविशेद्भूत्या परया तद्वधूवरं ।