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सागारधर्मामृत
[ १६७ करता है उसकी अपेक्षा मछली पकड़नेवाला धीवर कि जिसने मछलियां पकडने के लिये जाल फैला रक्खा है वह यदि हिंसा न भी कर सके अर्थात् यदि उसके जालमें एक भी मछली न आवे तथापि वह 'महा पापी है । भावार्थ - खेती आदिके करने में हिंसा होती ही है तथापि उसमें संकल्प नहीं करना चाहिये । क्योंकि संकल्प करनेसे ही अधिक हिंसाका भागी होता है । धीवर मछलियों के मारने का संकल्पकर जाल फैलाता है, इसलिये जाल में मछली न आनेपर भी उसे भारी हिंसाका पाप लगता है । तथा खेती करनेवाला विना संकल्प के अनेक जीवोंका घात करता है तो भी वह हिंसक नहीं कहलाता ||८२ ॥
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आगे — अन्यमतावलंबियोंने सिंह आदि घातक जीवोंकी हिंसा करने का विधान तथा दुखी सुखी आदि जीवोंके घात करने का विधान कहा है उसके निराकरण करने के लिये कहते हैं
१ - अन्नन्नपि भवेत्पापी निघ्नन्नपि न पापभाक् । अभिध्यानविशेषेण यथा धीवरकर्षकौ ॥ अर्थ - यह जिनमतका एक विलक्षण रहस्य है कि जीवोंका घात करता हुआ भी पापी नहीं होता और हिंसा नहीं भी करता हुआ पापी होता है यह केवल संकल्पका फल है जैसे कि किसान और धीवर । किसान खेती आदि में हिंसा करता हुआ भी पापी नहीं है और धीवर जालमें मछली नहीं आनेपर भी संकल्प करनेसे ही महा पापी है ।