________________
सागारधर्मामृत
[१३१ | पहिले जघन्य समदत्तिका व्याख्यान कर चुके थे अब इस श्लोकसे मध्यम समानदत्तिका अधिकार करते हैं अर्थात् यहांसे मध्यम समानदत्ति कहते हैं । गृहस्थमें यदि अधिक भी गुण हों तथापि वह मुनिकी अपेक्षा मध्यम पात्र ही गिना जाता है (ग्रंथकारने | इस श्लोकमें देनेके अर्थमें वप् धातुका प्रयोग किया है जिसका अर्थ 'बोना' होता है इसके देनेका यह अभिप्राय है कि जैसे बीजके बोनेसे कई गुना मिलता है इसीतरह कन्या आदि देनेसे स्वयं अधिक भोगोपभोगकी प्राप्ति होती है ॥१६॥
__ आगे--समानधर्मी श्रावकके लिये कन्या आदि देनेका कारण बतलाते हैं
आधानादि क्रियामंत्रव्रताद्यच्छेदवांच्छया। प्रदेयानि सधर्मेभ्यः कन्यादीनि यथोचितं ॥५७
अर्थ-गर्भाधान, प्रीति, सुप्रीति आदि गृहस्थोंको अवश्य करने योग्य ऐसी अरहंतदेवकी कही हुई क्रियायें हैं, तथा
१-चारित्रासारमें लिखा है- “ समदात्तः स्वसमक्रियामंत्राय निस्तारकोत्तमाय कन्याभूमिसुवर्णहस्त्यश्वरथरत्नादिदान । स्वसमानाभावे मध्यमपात्रस्यापि दानमिति" ॥ अर्थात्-जिसके क्रिया मंत्र व्रत आदि सब अपने समान हैं ऐसे गृहस्थाचार्यके लिये अर्थात् जो संसारसे पारजानेके उद्योगमें लगा है तथा दूसरोंको लगाता है ऐसे उत्तम गृहस्थके लिये कन्या, भूमि, सुवर्ण, हाथी, घोडा, रथ, रत्न आदि दान देना चाहिये । यदि गृहस्थाचार्य न मिले तो मध्यमपात्रके लिये ही ऊपर कहे हुये पदार्थ देना चाहिये इसे समानदत्ति कहते हैं ।