________________
MAAAAAAAAAw
सागारधर्मामृत
[१६३ लेकर उनका त्याग करना चाहिये, क्योंकि ऐसे त्यागका भी फल अवश्य मिलता है इसी बातको समर्थन करते हैं
यावन्न सेव्या विषयास्तावत्तानाप्रवृत्तितः । व्रतयेत्सवतो दैवान्मृतोऽमुत्र सुखायते ॥ ७७ ।। __ अर्थ-अपने सेवन करने योग्य जो स्वस्त्री पान आदि पदार्थ हैं उनके सेवन करनेमें जबतक अपनी प्रवृत्ति न हो अर्थात् जबतक उनके मिलनेकी संभावना न हो, गृहस्थोंको तबतकके लिये उनका त्याग कर देना चाहिये । क्योंकि जो कदाचित् दैवयोगसे बीचमें ही मरण हो गया तो व्रत सहित होनेसे अर्थात् मरनेके समय व्रती होनेसे उसे परलोकमें सुख मिलता है ।। ७७ ॥
___ आगे-तपश्चरण भी अपनी शक्तिके अनुसार करना चाहिये ऐसा जो पहिले कह चुके थे उसीकी विशेष विधि दिखलाते हैं
पंचम्यादिविधिं कृत्वा शिवांताभ्युदयप्रदं ।
उद्योतयेद् यथासंपनिमित्ते प्रोत्सहेन्मनः ॥ ७८ ॥ ___ अर्थ-गृहस्थोंको इंद्रं चक्रवती आदि अनेक सुख और अंतमें मोक्षसुख देनेवाले ऐसे पंचमो पुष्पांजलि मुक्तावलि रत्नत्रय आदि विधानोंको विधिपूर्वक पालनकर अंतमें अपनी संपत्ति और विभूतिके अनुसार उनका उद्यापन