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___सागारधर्मामृत
[ १५७ नेवाले मुनि उत्पन्न नहीं हुये तथापि गुणवान मुनियों के उत्पन्न होनेका प्रयत्न करनेवाले गृहस्थाको पुण्य ही होता है। तथा प्रयत्न करनेपर पापकर्मों के प्रतिघातसे कोई मुनि उत्पन्न होगया अर्थात् किसीने जिनदीक्षा ग्रहण कर ली तो प्रयत्न करनेवालेको, उन मुनिकी वैयावृत्य करनेवालोंको, अन्य साधर्मी लोगोंको और साधारण लोगोंको बडा भारी उपकार होता है । इसलिये जिनदीक्षा ग्रहण करने कराने का प्रयत्न सदा करते रहना चाहिये ॥ ७२ ॥
आगे--अणुव्रत और उपचाररूप महाव्रत धारण करनेवाली स्त्रियों को भी धर्मपात्र जानकर उनका उपकार करना चाहिये ऐसा कहते हैं
आर्यिकाः श्रावकाश्चापि सत्कुर्याद्गुणभूषणाः । चतुर्विधेऽपि संघे यत्फलत्युप्तमनल्पशः ।। ७३ ॥
अर्थ-जिनके श्रुत तप और शील आदि गुण ही आभूषण हैं ऐसी जो उपचारसे महाव्रत धारण करनेवाली आणिका हैं तथा जो अपनी शक्तिके अनुसार मूलगुण और उत्तरगुणोंको धारण करनेवाली श्राविका हैं, गृहस्थको यथायोग्य दान विनय और मान आदिसे उनका भी आदर सत्कार करना चाहिये । अपि शब्दसे यह सूचित होता है कि केवल व्रत धारण करनेवाली स्त्रियोंका ही आदर सत्कार नहीं करना चाहिये किंतु जो व्रत रहित और सम्यग्दर्शन सहित