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सागारधर्मामृत
[१२३ आगे-किन किनको दान देना चाहिये और क्यों देना चाहिये यही दिखलाते हैं
धर्मपात्राण्यनुग्राह्याण्यमुत्र स्वार्थसिद्धये । कार्यपात्राणि चात्रैव की त्वौचित्यमाचरेत् ॥५०॥
अर्म-रत्नत्रयको साधन करनेवाले मुनि श्रावक आदि धर्मपात्र गिने जाते है । धर्म अर्थ काम इन पुरुषार्थोंमें सहायता देनेवाले कार्यपात्र गिने जाते हैं। अपना कल्याण चाहनेवाले श्रावकको परलोकमें स्वार्थ साधन करनेके लिये अर्थात् दुसरे जन्ममें स्वर्ग आदिके उत्तम सुख प्राप्त करने के लिये मुनि आदि धर्मपात्रोंको उनके उपयोगी पदार्थ देकर उनका उपकार करना चाहिये । तथा इस लोकमें अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये अर्थात् धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थोंकी प्राप्ति होनेके लिये इन तीनों पुरुषार्थों के सहायक ऐसे कार्यपात्रोंको यथायोग्य पदार्थ देकर अनुगृहीत करना चाहिये, और अपनी कीर्ति फैलनेके लिये यथायोग्य कार्य करना चाहिये अर्थात् यथायोग्य दान देकर और प्रियवचन कहकर सबको संतुष्ट करना चाहिये। __अभिमाय-यह है कि परलोक सुधारने के लिये धर्मपात्रोंको |दान देना चाहिये । इस जन्ममें अपना कार्य सिद्ध करनेके लिये अपने सहायक लोगोंको संतुष्ट रखना चाहिये और अपना यश बढाने के लिये धर्मकी रक्षा करते हुये यथायोग्य रीतिसे सबको संतुष्ट करना चाहिये ॥५०॥