________________
wwvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
सागारधर्मामृत कर्मोंका क्षयोपशम आदि हो गया है। ऐसा कहनेसे प्रायोगिक लब्धि दिखलाई है। ‘जो संज्ञी वा सेनी है। ऐसा कहनेसे क्षयोपशम लब्धि दिखलाई है । 'जिसके परिणाम विशुद्ध हैं' ऐसा कहनसे विशुद्धि लब्धि दिखलाई है 'तथा गुरुके उपदेशसे जिसका मिथ्यात्वकर्म दूर होगया है। ऐसा कहनेसे देशना लब्धि दिखलाई है। ये चारों ही लब्धियां सम्यक्त्व उत्पन्न होनेकी योग्यतामें कारण हैं इसलिये यहांपर चार ही लब्धियां लिखी हैं । करण लब्धिके पीछे तो सम्यक्त्व हो ही जाता है इसलिये यहांपर उसका ग्रहण नहीं किया है ।
आगे--सम्यग्दर्शनकी कारणसामिग्रीमें सद्गुरुका उपदेश अवश्य होना चाहिये और इस भरतक्षेत्र में इससमय सदुपदेशक गुरु बहुत थोडे हैं इसलिये शोक करते हुये उनका दुर्लभपना दिखलाते हैं--
कलिप्रावृषि मिथ्यादिङ्मेघच्छन्नासु दिक्ष्विह ।
खद्योतवत्सुदेष्टारो हा द्योतंते क्वचित् क्वचित् ॥७॥
अर्थ-इस भरतक्षेत्रमें कलिकाल अर्थात् पंचमकाल रूपी वर्षाकालमें बौद्ध नैयायिक आदि मिथ्यादृष्टियोंके उपदेश रूपी मेघोंसे सदुपदेश रूपी सब दिशायें ढक रही हैं उसमें जीव अजीव आदि तत्त्वोंका पूर्ण उपदेश देनेवाले सुगुरु खद्योतके समान कहीं कहीं पर दिखलाई पड़ते हैं। भावार्थ-जिस प्रकार वर्षाऋतुमें सब दिशायें मेघोंसे ढक जाती हैं और उसमें