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सागारधर्मामृत
[ ८१ जातिको भी रसातलमें पहुंचा देता है। अभिप्राय यह है कि पाक्षिक श्रावकको वेश्यासेवन परस्त्रीसेवन और शिकार खेलनेका भी त्याग करना चाहिये तथा इसीतरह जूआ खेलने में भी आसक्त नहीं होना चाहिये | क्योंकि इन सबमें हिंसादि पाप होते हैं । 1 यहांपर “जूआ में आसक्त नहीं होना चाहिये” ऐसा जो लिखा है उसका यह अभिप्राय है कि पाक्षिक श्रावक केवल क्रीडा करने वा चित्त प्रसन्न करने के लिये जुआ खेलनेका त्याग नहीं कर सकता | पाक्षिक श्रावक के लिये केवल जूआ में आसक्त होनेका निषेध है ॥ १७॥
१ - सर्वानर्थप्रथनं मथनं शौचस्य सद्म मायायाः । दूरात्परिहर्तव्यं चौर्यासत्यास्पदं द्यूतं ॥ अर्थ - जुआ खेलना सब अनथका कारण है, पवित्रताका नाश करनेवाला है, मायाका घर और चोरी झूठका स्थान है इसलिये इसे दूरसे ही छोड देना चाहिये |
कौपीनं वसनं कदन्नमशनं शय्याधरा पांसुला । जल्पाश्ललिगिरः कुटुंबकजनद्रोहः सहाया विटाः ॥ व्यापाराः परवंचनानि सुहृदचौरा महांतो द्विषः । प्रायः सैष दुरोदरव्यसनिनः संसारवासक्रमः ॥ अर्थ - जुआरी लोगोंके पास लंगोटीके सिवाय अन्य वस्त्र नहीं ठहरते, बुरे अन्न ही खानेको मिलते हैं, धूलीवाली जमीन ही सोनेको मिलती है, उनके बचन सदा अश्लील रहते हैं वे कुटुंबीजनोंसे सदा द्वेष रखते हैं, लुच्चे लफंगे उनके सहायक होते हैं, दूसरोंको ठगना ही उनका व्यापार होता है, चोर ही उनके मित्र होते हैं और पूज्य वा बडे पुरुषों को वे शत्रु समझते हैं । जुआरी लोगोंके संसारमें रहनेका निवास प्राय: इसीतरहका होता है ।