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सागारधर्मामृत
[७९ पहरतक अर्थात् तीन घंटे तक रात्रीभोजन त्यागका व्रत पालन किया था इसलिये उसी पुण्यके प्रभावसे वह चांडालिनी मरकर शेठ सागरदत्तकी नागश्री नामकी पुत्री हुई थी । अभिप्राय यह है कि एक पहरतक ही रात्रिभोजनका त्याग कर देनेसे चांडालिनीने भी एक धार्मिक श्रीमानके यहां जन्म लिया था। । यदि इसे अच्छे गृहस्थ धारण करे तो फिर उनकी बात ही
क्या है उन्हें अवश्य ही स्वर्गादिके सुख मिलेंगे ॥१५॥ । आगे--जिसने मद्यमांस मधु आदिका त्याग कर दिया है आठ मूलगुण धारण करलिये हैं ऐसे पाक्षिक श्रावकको अपनी शक्ति के अनुसार अहिंसा आदि अणुव्रतोंका भी अभ्यास करना चाहिये ऐसा कहते हैं
स्थूलहिंसानृतस्तेयमैथुनग्रंथवर्जनं ।
पापभीरुतयाभ्यस्येबलवीर्यानिगूहकः ॥१६॥ अर्थ--आहार आदिसे उत्पन्न होनेवाली शक्तिको बल कहते हैं और स्वाभाविक शक्तिको पराक्रम वा वीर्य कहते हैं। श्रावकको अपने बल और पराक्रमको न छिपाकर अर्थात् अपनी शक्तिके अनुसार पाप होने के डरसे स्थूलहिंसा, झूठ, चोरी, परस्त्री और धन धान्य दासी दास आदि अधिक - परिग्रह इन पांचों पापोंके त्याग करनेका अभ्यास करना चाहिये, अर्थात् इनके त्याग करनेकी भावना रखना चाहिये । श्रावकको हिंसा