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सागारधर्मामृत [७७ दोनों ही छोडनेयोग्य हैं। क्योंकि सूके मद्य आदिमें विशेष राग होनेसे आत्मघात होता है ॥ १३ ॥
आगे-जिसप्रकार मद्य मांस आदिके खानेमें दोष है| उसीप्रकार रात्रिभोजन करने और विना छने पानीके पीनेमें | भी दोष है इसलिये इन दोनों के त्याग करनेकेलिये कहते हैं
रागजीववधापाय भूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् ।
रात्रिभक्तं तथा युंज्यान्न पानीयमगालितं ॥१४॥ __ अर्थ-धर्मात्मा पुरुष जिसप्रकार मद्य आदिका त्याग करते हैं उसीप्रकार उन्हें रात्रिभोजनका त्याग भी अवश्य करना चाहिये। क्योंकि रात्रिमें भोजन करनेसे दिनकी अपेक्षा विशेष 'राग होता है, अधिक जीवोंका घात होता है
और जलोदर आदि अनेक रोग हो जाते हैं । तथा ये ही सब दोष विना छने पानीके पीनेमें है, इसलिये धर्मात्मा पुरुषोंको विना छने पानी पीनेका त्याग भी करना चाहिये। पानी पीने योग्य पदार्थ हैं इसलिये पानी शब्दसे पीने योग्य अर्थात् पानी घी तैल दूध रस आदि समस्त पतले पदार्थ लेना चाहि
१-रागाद्युदयपरत्वादनिवृत्ति तिवर्तते हिंसां । रात्रि दिवमाहरतः कथं हि हिंसा न संभवति ॥अर्थ-तीन राग आदि भावोंके उदयसे किसीका त्याग नहीं हो सकता और बिना त्याग किये हिंसा छूट नहीं सकती । इसलिये जो लोग रात और दिन खाते रहते हैं उनके हिंसा क्यों नहीं हो सकती? अर्थात् अवश्य होगी।
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