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१०१ raamrakam
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सागारघमामृत
सागारधर्मामृत rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr बलिस्नपननाट्यादि नित्यं नैमित्तिकं च यत् ।
भक्ताः कुवति तेष्वेव तद्यथास्वं विकल्पयेत् ॥२९॥ __ अर्थ-भक्तजन लोग जो नित्य अथवा किसी पर्वके दिन जो बलि अर्थात् नैवेद्य आदि भेट अथवा पूजनकी | सामग्री, अभिषेक, नृत्य, गाना, बजाना, प्रतिष्ठा, रथयात्रा
आदि करते हैं उन सबका समावेश यथायोग्य उन ऊपर लिखे यज्ञोंमें ही करना चाहिये । भावार्थ- अभिषेक आदि ऊपर कहे हुये पूजन सब नित्यमह आदि यज्ञोंके ही भेद हैं ॥२९॥ । आगे-जल आदि द्रव्योंसे होनेवाली प्रत्येक पूजाका फल कहते हैं
वार्धारा रजसः शमाय पदयोः सम्यक्प्रयुक्तार्हतः सद्धस्तनुसौरभाय विभवाच्छेदाय संत्यक्षताः। यष्टुः स्रग्दिविजस्रजे चरुरुमास्वाम्याय दीपस्त्विषे धूपो विश्वगुत्सवाय फलमिष्टार्थाय चार्घाय सः॥३०॥
अर्थ-शास्त्रोंमें कही हुई विधिके अनुसार श्री जिनेंद्रदे- वके चरणकमलों में अर्पण की हुई जलधारा पापोंको शांत कर
देती है अथवा ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मोंको शांत कर देती है । भावार्थ- अरहंतदेवके चरणकमलोंको जल चढानेसे सब पाप नष्ट हो जाते हैं अथवा ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म नष्ट हो जाते हैं । तथा श्री जिनेंद्रदेवके चरणकमलों में विधिपूर्वक गंध (चंदन ) चढानेसे चढानेवालेका शरीर सुगंधित
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