________________
-
१०४ ]
दूसरा अध्याय जिसमें माधुर्य आदि गुण हैं उपमा आदि अलंकार हैं और इसलिये ही जो काव्य जाननेवाले रसिक लोगोंके चित्तको प्रसन्न करनेवाला है तथा जिसमें लोकोत्तर वर्णन है ऐसे गद्यपद्यमय रमणीय काव्योंके द्वारा जिस जल चंदन आदि सामग्री के स्वा. भाविक निर्मलता और सुगंधि आदि बड़े बड़े गुणोंके समुदाय भव्य लोगों के चित्तमें चमत्कार उत्पन्न कर रहे हैं अर्थात् ऐसे उत्तम काव्योंके द्वार जिसकी प्रशंसा गाई जा रही है और इसलिये ही उन भव्य लागाके चित्त जिस जल चंदन आदि सामग्रीमें जबर्दस्ती लग रहे हैं तथा जो जल चंदन आदि सामग्री हठपूर्वक नहीं लाई गई है, चित्तको मालन करनेवाली नहीं है, अपने तथा अन्य किसी 'पुरुषके खानेके बादकी बची हुई नहीं है और भी कोई पाप उत्पन्न करनेवाले दोष जिसमें नहीं है और पापरहित कारणोंसे तैयार की गई है ऐसी जल चंदन आदि सामग्रीसे श्री मिनेंद्रदेवकी पूजा करते हुये भव्यजन शंकादि दोषोंसे रहित ऐसे तत्त्वोंके श्रद्धान करनेरूप विशुद्ध सम्यग्दर्शनको और भी दृढ करें अर्थात् उस विशुद्ध सम्यग्दर्शनको इतना मजबूत करलें कि जिससे वह अपना उत्कृष्ट फल दे सके, और उसी मजबूत किये हुये विशुद्ध सम्यग्दर्शनसे वह भव्य तीर्थकर पदवीको प्राप्त हो जाय । क्योंकि यह
१ जो सामग्री किसी अन्य देवतापर चढी हुई है वह भी नहीं चढाना चाहिये।