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सागारघर्मामृत
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है तब उसे दशमी प्रतिमावाला अनुमतित्यागी कहते हैं । जो अपने लिये किये हुये भोजनोंका त्याग कर देता है उसे ग्यारहवीं प्रतिमावाला उद्दिष्टत्यागी कहते हैं । इस प्रकार ये ग्यारह प्रतिमायें हैं । जो ग्यारहवीं प्रतिमावाला अनुमोदना किये हुये तथा कहकर तैयार कराये हुये भोजनों को भी नहीं करता है वह खेती व्यापार आदि पापकार्यों में अपनी संमति क्यों देगा ? कह कर तैयार कराये हुये अथवा अपने लिये तैयार हुये वसतिका वस्त्र आदिको क्यों काममें लावेगा ? अर्थात् कभी नहीं । यह अपि शब्दसे सूचित होता है । ये ग्यारह प्रतिमायें एकके बाद दूसरी और दूसरीके बाद तीसरी इस प्रकार अनुक्रम से होती हैं क्योंकि इस जीवके अनादिकाल से विषयवासनाओंका जो अभ्यास हो रहा है उससे उत्पन्न हुआ असंयम एक साथ छूट नहीं सकता, इसलिये वह क्रमसे छूटता जाता है इसलिये ही अगली अगिली प्रतिमाओं में पहिली पहिली प्रतिमाओंके गुण अवश्य रहते हैं, और वे उत्तरोत्तर बढते जाते हैं । व्रतप्रतिमा में सम्यग्दर्शन और मूलगुणोंकी उत्कृष्टता रहती है, सामयिक में सम्यग्दर्शन, मूलगुण और व्रतोंकी उत्कृष्टता रहती है। इसीप्रकार सव प्रतिमाओंमें पहिली पहिली प्रतिमाओंके गुण अधिकता से रहते हैं । इसप्रकार अनुक्रमसे जो देशसंयमको
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१ श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि खलु येषु । स्वगुणाः पूर्वगुणैः सह संतिष्ठते क्रमविवृद्धाः ॥