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सागारधर्मामृत
[५१ करूंगा, कभी स्थूल झूठ चोरी आदि पाप नहीं करूंगा, भावार्थकभी किसीको दुःख नहीं पहुंचाऊंगा, इसप्रकारका जो समस्त त्रस जीवोंकी हिंसाका तथा स्थूल झूठ चोरी आदिका त्यागरूप आहिंसा परिणाम है उसे पक्ष कहते हैं । यहांपर सागारधर्मका प्रकरण है इसलिये त्रस जीवोंको हिंसाका त्याग ही लेना चाहिये। सब पकारकी हिंसाके त्यागसे यह अभिप्राय है कि उसके हिंसाके साथ साथ स्थूल झूठ, चोरी, परस्त्रीसेवन और अधिक ममत्वका भी त्याग है । इस पक्षको पालन करनेवाला अर्थात् पाक्षिक श्रावक चाहे मंदकषायी ही हो तथापि उसके केवल संकल्पी हिंसाका त्याग हो सकता है आरंभी हिंसा का नहीं। क्योंकि वह गृहसंबंधी समस्त कार्यों में लगा हुआ है, घरके सब काम उसे करने पड़ते है, इसलिये उसे आरंभी हिंसा अवश्य करनी पडेगी, अतएव धर्म आहार औषधि आदिके लिये जो त्रस जीवोंकी संकल्पी हिंसाका त्याग है तथा स्थूल झूठ चोरी आदिका त्याग है उसे पक्ष कहते हैं । पक्षके संस्कारोंसे अर्थात् पाक्षिक श्रावकके व्रत निरंतर पालन करनेसे जो वैराग्यरूप परिणाम रात दिन बढते रहते हैं, उन वैराग्य परिणामोंसे जो खेती व्यापार आदिसे उत्पन्न हुये हिंसा आदि दोषोंको प्रायश्चित्त आदि शास्त्रोंमें कहे हुये उपायोंसे विधिपूर्वक दूर करता है तथा अपने पुत्र के लिये अथवा यदि पुत्र न ! हो तो पुत्रके समान भाई भतीजा आदि अपने वंशमें उत्पन्न