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दूसरा अध्याय | पापोंका एकदेश त्याग तथा मद्य मांस और जूआका त्याग करना ये आठ मूलगुण हैं । इसप्रकार दो वा शब्दोंसे तीन पक्ष सूचित किये हैं। ऊपर जो “ इतना स्मरण और रखना चाहिये" यह लिखा है उसका अभिप्राय यह है कि हिंसा, झूठ,
चोरी, परस्त्री और परिग्रह ये पांच पाप, पांच उदंबरफल, | मद्य मांस मधु और जूआ इनका त्याग करना मोक्षका कारण है इसलिये आचार्योंको यम नियमरूपसे इनका त्याग करना चाहिये और गृहस्थों को अवश्य त्याग करना चाहिये । मूलगुणोंको तो जन्मभरके लिये धारण करना चाहिये और बाकी बचे हुओंको हो सके तो जन्मभर के लिये और यदि न हो सके तो नियमरूपसे अवश्य त्याग करना चाहिये ॥३॥
. आगे-मद्य' अर्थात् शराबमें बहुतसे जीव रहते हैं तथा उसके सेवन करनेसे इसलोक और परलोकमें अत्यंत दुःख होता है इसलिये शराब पीनेका अवश्य त्याग करना चाहिये ऐसा दिखलाते हैं
३-जन्मभरके लिये त्याग करना यम है और कुछ दिनोंके लिये त्याग करना नियम है। ... १. मनोमोहस्य हेतुत्वान्निदानत्वाच्चदुर्गतेः । मद्यं सद्भिः सदा त्याज्यमिहामुत्र च दोषकृत् ॥१॥ अर्थ-मद्य मनको मोहित करनेवाला है, नरकादि दुर्गतियोंका कारण है और इसलोक तथा परलोकमें दुःख देनेवाला है । इसलिये सत्पुरुषोंको सदा इससे अलग रहना चाहिये अर्थात् इसे छोडना चाहिये।