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प्रथम अध्याय
तरहका छल कपट न करे, दौरानी जिठानी ननद सासु आदिकी सेवा करे, अन्य कुटुंबी लोगोंको स्नेहकी दृष्टिसे देखे, सेवक लोगों पर दया रक्खे और सौत के साथ किसी तरहका विरोध न करै वही स्त्री गुणवती और अच्छी कहलाती है । इसतिरहं गृहस्थको ऐसे गांव अथवा नगर में रहना चाहिये कि जहां जिनमंदिर, शास्त्रभंडार, जैन पाठशाला, और सज्जन पुरुषों की संगति आदि धर्मवृद्धि के साधन हों तथा अपने कुटुंब आदि अच्छी तरह निर्वाह करनेके लिये धन कमानेकी भी : अनुकूलता हो । ऐसे गांव अथवा शहरमें गृहस्थको अपना घर बनाना चाहिये | घर भी ऐसा होना चाहिये जिसमें उसको किसी भी ऋतुमें किसी तरह की तकलीफ न हो, तथा जिनप्रतिमा विराजमान करने के लिये, धर्मध्यान स्वाध्याय आदि करने के लिये जिसमें स्वतंत्र एकांत स्थान हो । इसप्रकार गृहस्थके लिये त्रिवर्ग सेवन करने योग्य स्त्री, गांव व शहर और घर होना चाहिये ।
ह्रीमयः - - अर्थात् लज्जासहित । लज्जावान् गृहस्थको अपने ऐश्वर्य, चय ( उमर ) अवस्था, देश, काल, और कुलके अनुसार वस्त्र अलंकार आदि पहनना चाहिये । निर्लज्ज होकर अपने देश कुल और जातिमें निंद्य ऐसे आचरण करना उचित नहीं है।
युक्ताहार बिहार - अर्थात् जिसके भोजन और आने जानेके स्थान दोनों ही यथायोग्य हों, शास्त्रानुसार हों । धर्म
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