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प्रथम अध्याय ग्दर्शन विद्यमान है ऐसा जो पुरुष " आपको अच्छे लगनेवाले स्त्री आदिके विषयलुख छोडने योग्य हैं, कभी सेवन करनेयोग्य नहीं हैं, क्योंकि इनके सेवन करनेसे दुख देनेवाले अशुभ कर्मोंका बंध होता है। तथा अपने आत्मासे उत्पन्न हुआ नित्य अविनाशीक मोक्षसुख ग्रहण करनेयोग्य है अर्थात् रत्नत्रयरूप उपयोगके द्वारा आत्मामें प्रगट करने योग्य है " इसप्रकारका गाढ श्रद्धान करता है, कभी स्वप्नमें भी इसके प्रतिकूल विचार नहीं करता, तथा जिसप्रकार मारनेकेलिये कोतवालके द्वारा पकडा हुआ चोर कोतवालकी आज्ञानुसार काला मुंह करना, गधेपर चढकर शहरमें फिरना आदि निंद्य कार्य करता है उसीप्रकार जो 'पृथ्वीकी रेखा आदिके समान अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और
१ अनंतानुबंधी क्रोघका उदाहरण-पत्थरकी रेखा, अप्रत्याख्यानक्रोध-पृथ्वीकी रेखा, प्रत्याख्यानक्रोध-बालू अथवा धूलिकी रेखा, संज्वलन क्रोध-जलकी रेखा, इसपकार चारों क्रोधके ये चार दृष्टांत हैं । इसीतरह मानके उदाहरण—पाषाणका स्तंभ, हड्डी, लकडी
और लता हैं। मायाके उदाहरण-बांसकी जड, मेढेका सींग, गोमूत्रिका ( चलते हुये बैलका पेशाव करना ) और लिखनेमें कलमकी 'टिढाई है । लोभके उदाहरण-मजीठका रंग, काजल, कीचड और हल्दीका रंग है । यहांपर अनंतानुबंधी कषायको छोडकर शेष तीनोंका उदाहरण बतलाया है क्योंकि अविरत सम्यग्दृष्टिके इन तीनोंका ही उदय है । सम्यग्दर्शन हो जानेसे अनंतानुबंधीका उदय नहीं है।